मनरेगा स्कीम के बारे में वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं
- Team Exammr
- Sep 16, 2020
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महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना एक ऐसी स्कीम है जो 'काम करने का अधिकार' की गारंटी देती है। आजादी के बाद से लेकर अब तक के इतिहास में किसी भी अन्य सरकारी योजना या किसी निजी पहल की तुलना में इस योजना से अधिक ग्रामीण रोजगार पैदा हुए हैं। हालांकि, काफी सालों से यह योजना विवादों से घिरी रही है। तो चलिए डालते हैं इस योजना के हर एक पहलु पर नजर:
मनरेगा स्कीम आखिर है क्या?:
मनरेगा 2005 के "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम" का श्रम कानून है। इस अधिनियम को पहली बार 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी नरसिम्हा राव द्वारा प्रस्तावित की गई थी। यह श्रम कानून और सामाजिक सुरक्षा उपाय है जिसका उद्देश्य रोजगार प्रदान करना है।
मनरेगा योजना के उद्देश्य:
* ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले अनस्किल्ड पंजीकृत वयस्क मजदूरों को हर साल 100 दिन के लिए काम देना।
* इसका प्राथमिक उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आजीविका का स्रोत बनना था।
* इसके अलावा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए समाज में जगह बनाना और उन्हें सम्मानजनक जीवन प्रदान करना भी इसका एक मुख्य उद्देश्य है।
* भारत में पंचायत राज को मजबूत बनाना।
मनरेगा की खूबियां
मनरेगा स्कीम की कई आकर्षक खूबियां हैं जो विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचाने के हिसाब से डिज़ाइन की गई है। ये खूबियां कुछ इस प्रकार से है:
* यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए है और विशेष रूप से महिलाओं के रोजगार पर केंद्रित है। इस योजना का उद्देश्य महिलाओं को कम से कम एक तिहाई लाभ देना है।
* वेतन का भुगतान साप्ताहिक आधार पर होता है और न्यूनतम वेतन 202 रुपये होता है। व्यक्ति को दैनिक बेरोजगारी भत्ता प्राप्त करना होगा यदि किसी व्यक्ति को 15 दिन तक काम नहीं मिलता है तो उसे बेरोजगारी भत्ता दिया जाता है।
* जहां मजदूर काम करते हैं वहां काम देने वाले के पास उनके रहने का ठिकाना,पीने का पानी और प्राथमिक चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाएं होनी चाहिए।
* खातों का उचित ऑडिट और रखरखाव होता है।
* मजदूरों के निवास स्थान से 5 किमी के दायरे में रोजगार मुहैया कराना और नही तो कन्वेंस चार्ज के रूप में 10 प्रतिशत अतिरिक्त भुगतान देना होता है।
* ग्राम पंचायत में हर छह महीने में एक बार सोशल ऑडिट की जाती है।
मनरेगा की संरचना
मनरेगा योजना की संरचना कुछ इस प्रकार से है:
* नेशनल लेवल
* स्टेट लेवल
* डिस्ट्रिक्ट लेवल
* ब्लॉक लेवल
* क्लस्टर लेवल
* ग्राम पंचायत लेवल
फंडिंग
मनरेगा योजना के सुचारू संचालन के लिए बहुत सारे फंड्स की आवश्यकता होती है। इसके लिए राज्य और केंद्र सरकार निम्न प्रकार से खर्च उठाती है:
केंद्र सरकार
* अनस्किल्ड लेबर को पूरी मजदूरी।
* मैटेरियल कॉस्ट के 75% के साथ-साथ स्किल्ड और सेमी-स्किल्ड लेबर को 75% मजदूरी।
* सेंट्रल एम्प्लॉयमेंट गारंटी काउंसिल के सभी खर्च।
* एडमिनिस्ट्रेटिव एक्सपेंसेज़
राज्य सरकार
* बेरोजगारी भत्ता और मैटेरियल कॉस्ट के 25% के साथ स्किल्ड और सेमी-स्किल्ड लेबर को 25% मजदूरी।
* स्टेट एम्प्लॉयमेंट गारंटी काउंसिल के सभी खर्च।
मनरेगा में आवेदन करने के मापदंड
एक पंजीकृत ग्रामीण परिवार और जॉब कार्ड रखने वाला एक वयस्क इस योजना के लिए आवेदन करने के पात्र हैं। आवेदन लिखित बयानों में या मौखिक रूप से केवल एक वार्ड सदस्य या किसी भी मनरेगा अधिकारी को पूरे विवरण के साथ प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
पदाधिकारियों की भूमिका
ग्राम पंचायत सभी पंजीकरण और आवेदन प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार है। ये यह भी सुनिश्चित करता है कि सर्वे करते हुए योजना की बुनियादी कार्यवाही की निगरानी की जाए या नहीं।
* ग्राम रोज़गार सहायक पंजीकरण प्रक्रिया, जॉब कार्ड के वितरण आदि को देखता है और सुनिश्चित करता है कि कोई गलत काम न हो। वह ग्राम पंचायत स्तर पर रजिस्टर भी मेंटेन करता है।
* मेट्स डेली वर्क साइट्स की देखरेख करते हैं, जॉब कार्ड में एंट्रियों को अपडेट करते हैं, दैनिक उपस्थिति लेते हैं और वर्क साइट की मेजरमेंट बुक को भी मेंटेन करते हैं।
* पंचायत विकास अधिकारी इंटरमीडिएट पंचायत, जिला पंचायत या राज्य सरकार के निर्देशानुसार कर्तव्यों का पालन करता है।
* जूनियर इंजीनियर योजना के सभी टेक्निकल सेंक्शंस की निगरानी करता है और उनका रिकॉर्ड रखता है।
* इंटरमीडिएट पंचायत, ग्राम पंचायत और ब्लॉक स्तर पर की गई परियोजनाओं और कार्यों की निगरानी करती है।
* प्रोग्राम ऑफिसर ग्राम पंचायत से परियोजना प्रस्तावों का अध्ययन करता है और उन्हें इंटरमीडिएट पंचायत के समक्ष प्रस्तुत करता है। वे मजदूरों को मजदूरी का भुगतान भी सुनिश्चित करते हैं।
इस योजना से जुड़ी समस्याएं
हाल ही के दिनों में इन स्कीम से गरीबों को मिल रहे फायदों के बावजूद कुछ समस्याएं भी सामने आई हैं।
* वेतन भुगतान में देरी।
* थोड़ी स्वायत्तता के साथ, ग्राम पंचायतों को इस योजना को लागू करने में मुश्किल हुई।
* यह ज्यादातर राज्यों में धन की कमी के कारण आपूर्ति-संचालित योजना बन गई थी।
निष्कर्ष
चूंकि कोरोनाकाल में काफी मजूदर अपने अपने गांवो की ओर लौट चुके हैं ऐसे में इस कल्याणकारी योजना को पुनर्जीवित करने का यह आदर्श समय हो सकता है। इस योजना गौरवमयी इतिहास को वापस लाने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए।
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