वायुमंडल का मतलब गैसों की परत से है जो किसी ग्रह या पिंड को घेरे रहती हैं। यह गैसों का एक आवरण है जो पृथ्वी की सतह, महासागर और बर्फ से ढकी सतह से लेकर इससे बाहर तक फैला हुआ है। इसके अलावा, इसमें इतनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति होती है जो वातावरण को अपनी जगह पर बने रहने में मदद करती है।
सौरमंडल में केवल पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा गृह जिसमें जीवन है। वायुमंडल पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करता है जिसे वायु के रूप में भी जाना जाता है। यह पृथ्वी पर दबाव बनाता है, पानी बनता है और यह अल्ट्रावॉयलट सोलर रेडिएशन को भी सोख लेता है और उससे हमारी रक्षा करता है। यह दिन में हमारी पृथ्वी को गर्म जबकि रात में ठंडक देता है।
वायुमंडल की संरचना
पृथ्वी का वातावरण लगभग 480 किलोमीटर (300 मील) मोटा है, जबकि इसका अधिकांश भाग सतह के 16 किलोमीटर करीब 10 मील के भीतर है। वायुमंडल में कई अलग-अलग गैसों का मिश्रण होता है। पृथ्वी के वायुमंडल में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, आर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य गैसें मौजूद हैं। ये स्थायी गैसें हैं और इनका प्रतिशत वायुमंडल में स्थिर रहता है।
* नाइट्रोजन: नाइट्रोजन पृथ्वी पर वायु का 78.08% योगदान करती है। यह गंधहीन, रंगहीन और एक निष्क्रिय गैस मानी जाती है।
* ऑक्सीजन: पृथ्वी का वायुमंडल 20.95% ऑक्सीजन से बना है। यह पौधों द्वारा किरणों से फोटोसिंथेसिस बनाने के बाद उत्पन्न होती है।
* आर्गन: आर्गन तीसरी गैस है और वायुमंडल में इसका हिस्सा लगभग 0.93% है। यह भी रंगहीन, गंधहीन और रासायनिक रूप से निष्क्रिय है।
* कार्बन डाइऑक्साइड:पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मौजूदगी 0.04% है। इसका स्वरूप प्राकृतिक है और इसे ट्रेस गैस माना जाता है।
नियॉन, मीथेन, हीलियम, हाइड्रोजन, क्रिप्टन, नाइट्रस ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, आयोडीन, और अमोनिया भी वायुमंडल में ट्रेस गैसों के रूप में मौजूद हैं। इसके अलावा वॉटर वेपर्स यानी जल वाष्प कम ऊंचाई पर मौजूद है। पूरे दिन में इसकी सक्रियता समय और स्थान के हिसाब से अलग अलग होती है। इसके बाद कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी हैं जिनकी प्रतिशतता में बदलाव होता रहता है।
वायुमंडल की परतें
पृथ्वी के वायुमंडल को पांच प्रमुख परतों में विभाजित किया जा सकता है, अर्थात् एग्जोस्फेयर, थर्मोस्फेयर, मेसोस्फेयर, स्ट्रैटोस्फेयर और ट्रोपोस्फेयर। एक काल्पनिक रेखा, जिसे कर्मन रेखा के रूप में जाना जाता है, वातावरण और अंतरिक्ष का विभाजन करती है क्योंकि इनकी कोई विशिष्ट सीमा नहीं है। प्रत्येक परत के साथ वातावरण पतला होता चला जाता है।
ट्रोपोस्फेयर या क्षोभमंडल
ट्रोपोस्फेयर या क्षोभमंडल में 75% वायुमंडल होता है। यह पृथ्वी की सतह के सबसे करीब की परत है और वायुमंडल के सबसे निचले हिस्से को बनाता है। इसके अधिकांश हिस्से में बारिश, ठंडक और बर्फ शामिल है। वायुमंडल की इस परत में तापमान पृथ्वी से उपर की तरफ की दूरी के साथ घटता चला जाता है।
ट्रोपोस्फेयर पृथ्वी की सतह से लगभग 7 किलोमीटर से 20 किलोमीटर ऊपर तक फैला हुआ है। इस परत में सभी वॉटर वेपर्स और डस्ट पार्टिकल यानी धूल के कण मौजूद हैं। ट्रोपोस्फेयर के सबसे ऊपरी भाग को ट्रोपोपॉज़ कहा जाता है, जबकि सबसे निचले हिस्से को बाउंड्री लेयर के रूप में जाना जाता है।
स्ट्रैटोस्फियर या समताप मंडल
समताप मंडल यानी स्ट्रेटोस्फेयर, ट्रोपोस्फेयर परत के खत्म होने के बाद से जमीन से लगभग 50 किलोमीटर (31 मील) ऊपर फैला हुआ है। इस परत में भारी मात्रा में ओजोन गैस होती है। ज्यादा उंचाई पर होने के कारण इस परत का तापमान ज्यादा होता है क्योंकि इस परत में मौजूद ओजोन गैस द्वारा सूरज से आने वाली अल्ट्रावॉयलेट या पराबैंगनी किरणों को सोख लिया जाता है जिससे ये हमें स्किन कैंसर सहित कई बीमारियों से बचाती है।
हेलन, सीएफसी, या फ्रियॉन जैसे कैमिकल इस परत में मौजूद ओजोन की मात्रा को कम करते हैं। इस परत में मौजूद हवा बहुत शुष्क और पतली होती है और बहुत स्थिर वायुमंडलीय स्थिति पैदा करती है। इस प्रकार, जेट विमान और एयर बैलून इस परत में उड़ पाते हैं।
मीज़ोस्फेयर
मीज़ोस्फेयर, स्ट्रेटोस्फेयर से उपर वाली परत होती है। इस परत में उंचाई कम होने के साथ साथ घटते हुए न्यूनतम माइनस 90-डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। मीज़ोस्फेयर की सबसे ऊपरी परत को मेसोपॉज कहा जाता है। यह वायुमंडल का सबसे ठंडा हिस्सा होता है।
मीज़ोस्फेयर जमीन से 50 किलोमीटर ऊपर से शुरू होता है और 85 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैला होता है। वेदर बलून और जेट विमान इस परत में नहीं उड़ सकते हैं। अधिकांश उल्का पिंड इस परत में वैपोराइज्ड या जल जाती हैं।
थर्मोस्फेयर या बाह्य वायुमंडल
थर्मोस्फेयर जमीन से 90 किलोमीटर ऊपर और 500 से 1000 किलोमीटर तक फैला हुआ है। इस परत में, तापमान 1500 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। अमूमन थर्मोस्फेयर को अंतरिक्ष का हिस्सा माना जाता है क्योंकि इस परत में हवा का घनत्व बहुत कम है।
स्पेस शटल और इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन इस परत में पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। यहां तक कि थर्मोस्फेयर में भी अरोरा होते हैं। इस परत में, मॉलीक्यूल्स और एटम्स अंतरिक्ष में मौजूद चार्ज्ड पार्टिकल्स से टकराते हैं। इससे एक काफी उर्जा उत्पन्न होती है।
एग्जोस्फेयर
हमारे वायुमंडल में एग्जोस्फेयर सबसे उपरी पर के रूप में मौजूद है जो धीरे-धीरे अंतरिक्ष में लुप्त हो जाती है। यह पृथ्वी की सतह से 500 किमी ऊपर मौजूद है। एग्जोस्फेयर में मौजूद हवा बहुत पतली होती है और इस तरह यह अंतरिक्ष में वायुहीन लेयर के समान है। ज्यादातर मामलों में, एग्जोस्फेयर को वायुमंडल का वास्तविक हिस्सा नहीं माना जाता है।
एग्जोस्फेयर का निचला हिस्सा एक्सोबेस के रूप में जाना जाता है। चूंकि यह अंतरिक्ष में विलीन हो जाता है, इस परत में कोई ऊपरी सीमा नहीं होती है। साथ ही, वायुमंडल की इस परत में किसी तरह के टकराव नहीं होते हैं। इस परत के भीतर या नीचे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के कई ऑरबिट मौजूद हैं।
निष्कर्ष
ये पृथ्वी के वायुमंडल की पांच मुख्य परतें या लेयर्स थीं, जिनके फैलाव, तापमान परिवर्तन और अन्य लक्षणों के बारे में हमने आपको बताया।
सेकंडरी लेयर्स की बात की जाए तो ओजोन लेयर स्ट्रेटोस्फेयर के भीतर पाई जाती है, जबकि आयोनोस्फेयर, थर्मोस्फेयर, मीज़ोस्फेयर और एग्जोस्फेयर जैसी परतों से फैला है वहीं बाउंड्री लेयर ट्रोपोस्फेयर का एक हिस्सा है, और वायुमंडल में होमोस्फेयर और हिटिरोस्फेयर जैसी परतें भी मौजूद है।
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