भारत की अर्थव्यवस्था काफी विशाल है और इसमें उचित संतुलन बनाये रखने के लिए, विभिन्न केंद्र सरकारों ने स्वतंत्रता के बाद से इसमें कई सुधार किए हैं।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश/फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (एफडीआई) और विदेशी संस्थागत निवेशक/ फॉरेन इंस्टीटयूशनल इन्वेस्टर (एफआईआई) भारतीय अर्थव्यवस्था से संबंधित प्रमुख कारकों में से हैं जो कि देश में धन प्रवाह (मनी फ्लो), प्रोडक्शन लेवल और क्वालिटी को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
एफडीआई की विशेषताएँ
भारत के संदर्भ में आसान भाषा में एफडीआई को समझा जाएं तो किसी विदेशी कंपनी या व्यक्ति द्वारा भारत के किसी विशिष्ट औद्योगिक क्षेत्र में किया गया निवेश एफडीआई कहलाता है। केंद्र सरकार देश में विभिन्न उद्योगों के लिए एफडीआई मानदंड निर्धारित करती है। अक्सर देखा गया है कि विदेशी निवेशकों को सरकारें टैक्स में छूट, कम ब्याज दरों पर आसान लोन और बहुत सी अन्य रिहायतों से लुभाने की कोशिश करती है।
एफडीआई आवश्यक फंड्स को आसानी से बढ़ाने में मदद करता है जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन बढ़ता है। हालांकि, निवेशक का बिज़नेस मैनेजमेंट पर नियंत्रण रहता है।
एफआईआई की विशेषताएँ
एफआईआई एक प्रकार का इन्वेस्टमेंट है जहां एक विदेशी संस्थान किसी भारतीय कंपनी की संपत्ति/असेस्ट्स में पैसा निवेश करता है। उदहारण के लिए, म्यूचुअल फंड, बीमा बॉन्ड, डिबेंचर और पेंशन फंड आदि।
एफआईआई द्वारा किए गए इन मौद्रिक संपत्तियों (मॉनेटरी असेस्ट्स) को विदेशी संपत्ति (फॉरेन असेस्ट्स) माना जाता है। एफआईआई त्वरित लाभ कमाने के प्राथमिक शैली माना जाता है।
एफडीआई के विपरीत, एफआईआई में निवेशक का किसी भी भारतीय कंपनी पर कोई मैनेजरियल कंट्रोल नहीं होता है।
एफडीआई और एफआईआई में अंतर
एफडीआई और एफआईआई के बीच के अंतर को नीचे दिए गए कुल प्रमुख पहलुओं द्वारा समझा जा सकता है:-
- बाजार भत्ता/अनुमति (Market allowance):- एफडीआई के माध्यम से भारतीय बाजार में अपनी उपस्थिति बनाने के लिए किसी कंपनी को अधिक बाधाओं या यूं कहें कि कड़ें नियम कानूनों का पालन करना पड़ता है। इसके अलावा, एफडीआई को कई औपचारिकताएं भी पूरी करनी पड़ती हैं। दूसरी ओर, एफआईआई अपनी आवश्यकताओं के अनुसार बाजार में प्रवेश या इससे निकल सकते हैं। आमतौर पर बाजार में उथल-पुथल की स्थिति बनने पर एफआईआई बिकवाली (सेल-आउट) कर निकल जाते हैं। वहीं, एफडीआई की प्रकृति को स्थायी माना जाता है।
- बाजार के परिणाम (Results for the market):- एफडीआई से बाजार को पूंजी प्रवाह (कैपिटल इनफ्लो) में लॉन्ग टर्म फायदा मिलता है। जबकि, एफआईआई इंवेस्टमेंट का स्तर देश की समग्र आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है। अर्थव्यवस्था के स्थिर होने पर एफआईआई पर अधिक रिटर्न (रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट-आरओआई) मिल सकता है।
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