भारत के फाइनेंशियल रेगुलेटर्स का एक संक्षिप्त परिचय
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भारत के फाइनेंशियल रेगुलेटर्स का एक संक्षिप्त परिचय

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भारत में पूरी अर्थव्यवस्था और वित्तीय व्यवस्था का प्रबंधन स्वतंत्र नियामक संस्थाओं (फाइनेंशियल रेगुलेटर्स) द्वारा किया जाता है। ये वित्तीय नियामक यानी फाइनेंशियल रेगुलेटर्स यह सुनिश्चित करते हैं कि भारत के फाइनेंशियल सिस्टम में सभी अनुपालनों के सख्त पालन के साथ ठीक से काम हो रहा है कि नहीं।

फाइनेंशियल सेक्टर को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है और इसमें संचलन, उचित गतिशीलता और संसाधनों के आवंटन में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मोटे तौर पर, देश के फाइनेंशियल सिस्टम में फाइनेंशियल मार्केट, फाइनेंशियल इंटरमिडिएशन(वित्तीय मध्यस्थता) और फाइनेंशियल इंस्टरुमेंट्स (वित्तीय साधन) शामिल हैं। 

भारत में फाइनेंशियल रेगुलेटर्स को कड़ाई से प्रत्येक और व्यक्तिगत क्षेत्र को समर्पित किया जाता है जिसमें बीमा, कमोडिटी मार्केट, बेकिंग, पेंशन फंड और पूंजी बाजार शामिल हैं।सभी रेगुलेटरी बॉडी के ऊपर,भारत सरकार अग्रणी संस्था है जो सभी फाइनेंशियल रेगुलेटर्स की गतिविधियों पर नज़र रखते हुए फाइनेंशियल सिक्योरिटी सिस्टम की सहायता से फाइनेंशियल सिस्टम की निगरानी और नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

इस बात में कोई हर्ज नहीं कि देश का फाइनेंशियल ईकोसिस्टम तभी स्वस्थ और क्रियाशील रह सकता है, जब यह दिशानिर्देशों और अनुपालनों के समूह द्वारा शासित किया जाए।

गाइडलाइंस और प्रोटोकॉल वित्तीय संस्थानों को अच्छी तरह संचालित करने के लिए जिम्मेदारी और जवाबदेही की भावना को बढ़ाते हैं।  वित्तीय संस्थानों को स्वस्थ और पारदर्शी वातावरण बनाए रखने के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इसके बीच के अंतर को समझना चाहिए।

ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए फाइनेंशियल रेगुलेटर की आवश्यकता होती है जो फाइनेंशियल ईकोसिस्टम में उचित आचरण को सख्ती से सुनिश्चित कर सकता है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों को वित्तीय संस्थानों के अर्थ और फाइनेशियल रेगुलेटर्स की भूमिका और जिम्मेदारियों के बारे में पता होना चाहिए। इस आर्टिकल में हम भारत के फाइनेंशियल रेगुलेटर्स के बारे में आपको संक्षिप्त में बताएंगे। इसकी मदद से आपको परीक्षा में इस संबंध में आने वाले प्रश्नों को सॉल्व करने में काफी मदद मिलेगी।

भारत के फाइनेंशियल ईकोसिस्टम में निम्न फाइनेंशियल रेगुलेटर्स की भूमिका होती है:

भारतीय रिजर्व बैंक

भारतीय रिजर्व बैंक एक अग्रणी फाइनेंशियल रेगुलेटर और सर्वोच्च संस्थान है जो देश में सभी मौद्रिक गतिविधियों को नियंत्रित करता है। यह भारत में धन से संबंधित हर चीज को रेगुलेट करने के लिए जिम्मेदार है।

इसे सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के रूप में भी जाना जाता है जो एक आखिरी ऋणदाता के रूप में भी संकट के समय में सभी वित्तीय संस्थानों के रक्षक के रूप में कार्य करता है। भारतीय रिजर्व बैंक की पृष्ठभूमि के बारे में बात करें तो इसे 1 अप्रैल, 1935 को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के प्रावधानों के अनुरूप स्थापित किया गया था। रिज़र्व बैंक का मुख्यालय कोलकाता में स्थापित किया गया था, लेकिन बाद में वर्ष 1937 में इसे मुंबई स्थानांतरित कर दिया गया। भारतीय रिजर्व बैंक पूरी तरह से भारत सरकार के स्वामित्व में है। इसकी मुख्य भूमिका कमर्शियल बैंकों, पब्लिक सेक्टर बैंक, प्राइवेट सेक्टर बैंक, रीजनल रूरल बैंक, को  ऑपरेटिव बैंक और नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों  जैसे सभी वित्तीय संस्थानों के लिए एक फाइनेंशियल रेगुलेटर के रूप में काम करना है। आरबीआई की प्रमुख जिम्मेदारी मौद्रिक नीतियां बनाना, देश में मुद्रास्फीति की दर को नियंत्रित करना और देश के विकास में एक रीढ़ की तरह काम करना है।

सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड  ऑफ इंडिया सेबी

सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड  ऑफ इंडिया सेबी भारत का एक और अग्रणी फाइनेंशियल रेगुलेटर है।

इसकी पृष्ठभूमि के बारे में बात करें तो सेबी की स्थापना वर्ष 1988 में सिक्योरिटी मार्केट्स को रेगुलेट यानी विनियमित करने के प्रमुख उद्देश्य से की गई थी। सेबी, किसी भी कंपनी को जो सिक्योरिटी मार्केट का हिस्सा बनने की इच्छा रखती है उसके लिए गाइडलाइंस और प्रोटोकॉल का मसौदा तैयार करने के लिए जिम्मेदार है।

एक समय ऐसा भी आया था जब सेबी के गठन से पहले सिक्योरिटी मार्केट में धोखाधड़ी के विभिन्न मामले सामने आए थे और भारत सरकार को उसी के बारे में कई शिकायतें मिला करती थीं। धोखाधड़ी के मामलों में कमी लाने के लिए भारत सरकार ने रेगुलेटरी बॉडी बनाने का निर्णय लिया।

वर्ष 1988 में जब सेबी की स्थापना हुई थी, तब उसे सभी शक्तियां नहीं दी गई थीं, लेकिन बाद में सेबी अधिनियम, 1992 की शुरुआत के साथ, सेबी एक स्वायत्त निकाय बन गया जिसके साथ सभी वैधानिक शक्तियां प्रदान की गईं। वर्तमान में, यह एकमात्र ऐसी संस्था है जो भारत में सिक्योरिटी औेर कमोडिटी मार्केट को नियंत्रित करती है।

सेबी के बोर्ड में एक अध्यक्ष, संयुक्त सचिव, सदस्य नियुक्त, आरबीआई के डिप्टी-गवर्नर, कॉर्पोरेट अफेयर मंत्रालय के सचिव और कुछ निर्वाचित सदस्य शामिल हैं। सेबी की प्रमुख भूमिका और जिम्मेदारी पारदर्शिता बनाए रखने, कानूनों और विनियमों को लागू करने और निवेशक की शिकायतों को दूर करने की है। सेबी ने 'स्कोर्स' नाम से निवेशकों के लिए एक शिकायत सहायता प्रणाली भी बनाई है। सेबी को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए पूरे देश में 20 रीजनल  ऑफिस खोले गए हैं।

पेंशन फंड रेगुलेटर एंड डेवलपमेंट अ​थॉरिटी (पीएफआरडीए)

पेंशन फंड रेगुलेटर एंड डेवलपमेंट अ​थॉरिटी (पीएफआरडीए) एक अधिकृत निकाय है जिसे वर्ष 2003 में भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया था। यह वित्त मंत्रालय द्वारा अधिकृत भी है, और इसका प्रमुख कार्य पेंशन फंड की गतिविधियों को रेगुलेट करना और उनकी निगरानी करते हुए वरिष्ठ नागरिकों की इनकम सिक्योरिटी को बढ़ावा देना है। ये और भी अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाता है जिसमें खाताधारकों की ब्याज दर की रक्षा करना और पेंशन के पैसे और अन्य विभिन्न स्कीमों की निगरानी करना शामिल है। प्राधिकरण पेंशन फंड मैनेजर्स, नेशनल पेंशन स्कीम ट्रस्टी बैंक, और सेंट्रल रिकॉर्डकीपिंग एजेंसी (सीआरए) जैसी विभिन्न मध्यवर्ती एजेंसियों को भी नियुक्त करता है।

इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी  ऑफ इंडिया(आईआरडीए)

इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी  ऑफ इंडिया(आईआरडीए) भी भारत का एक और प्रमुख फाइनेंशियल रेगुलेटर है। यह इंश्योरेंस इंडस्ट्री का संचालन और निगरानी करने वाली सर्वोच्च संस्था है। यह पूरी तरह से भारत सरकार के स्वामित्व में है और भारत की सभी पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर की बीमा कंपनियों के लिए एक रेगुलेटर के रूप में काम करती है।

इसकी जिम्मेदारी के प्रमुख क्षेत्र में बीमा कंपनियों के कामकाज की निगरानी और दिशानिर्देशों का मसौदा तैयार करना शामिल है, जिसे सख्ती से जनता के कल्याण और उनके फायदों के लिए निर्देशित कराया जाता है।

आईआरडीए की पृष्ठभूमि के बारे में बात की जाए तो इसे वर्ष 1999 में स्थापित किया गया था, जिसे बाद में प्रावधानों में कुछ बदलाव करते हुए वर्ष 2002 में संशोधित किया गया था।

आआरडीएआई एक 10-सदस्यीय मेंबर बॉडी है, जिसमें भारत सरकार द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष, 5 फुल टाइम और 4 पार्ट टाइम मेंबर होते हैं।

फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (एफएमसी)

फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (एफएमसी) भारत के वित्तीय बाजार को रेगुलेट करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। यह कमोडिटी (एमसीएक्स, एनसीडेक्स,एनएमसीई,यूसीएक्स) का एकमात्र अग्रणी रेगुलेटर है जो भारतीय वायदा बाजार में कारोबार करते हैं। इसने कमोडिटी ट्रेंडो के तहत 17  ट्रिलियन रुपये की राशि को रेगुलेट किया है। इसका मुख्यालय मुंबई में है और ये वित्त मंत्रालय के साथ पूर्ण सहयोग के साथ काम कर रहा है। इस आयोग की प्रमुख भूमिका फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स एक्ट, 1952 के मामलों पर केंद्र सरकार को सलाह देना है।

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज  ऑफ इंडिया(एनएसई)

नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना फ़ेरवानी समिति की सिफारिश पर की गई थी।

वर्ष 1992 में, भारत सरकार ने नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना में सहायता के लिए आईडीबीआई को अधिकृत किया। एनएसई की मुख्य भूमिका में इक्विटी शेयर, बॉन्ड और गवर्नमेंट सिक्योरिटी बिजनेस शामिल है। एमआईबीओआर (मुंबई इंटर-बैंक ऑफर रेट) और एमआईबीआईडी (मुंबई इंटर-बैंक बिड रेट) नेशनल स्टॉक एक्सचेंजों की दो नई संदर्भ दरें हैं जो मुख्य रूप से इंटरबैंक कॉल मनी मार्केट के लोन के लिए उपयोग की जाती हैं।

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज  ऑफ इंडिया बीएसई

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज एशिया के सबसे पुराने स्टॉक एक्सचेंजों में से एक है और इसे 1875 में "द नेटिव शेयर एंड स्टॉक ब्रोकर एसोसिएशन" के नाम से स्थापित किया गया था।

बीएसई का मुख्यालय मुंबई में स्थित है और यह भारत सरकार द्वारा सिक्योरिटी कॉन्ट्रैक्ट्स (रेगुलेशन) एक्ट, 1956 के तहत मान्यता प्राप्त है।

फॉरेन इंवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड (एफआईपीबी)

फॉरेन इंवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड (एफआईपीबी) एक ऐसी एजेंसी है जिसका गठन मुख्य रूप से फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (एफडीआई) से संबंधित मुद्दों और अनुपालन से निपटने के लिए किया गया था।

इसका मुख्य मकसद देश में ज्यादा से ज्यादा निवेश को बढ़ाना से है ताकि देश में विकास की रफ्तार बढ़ सके। फाइनेंशियल स्टेबिलिटी बोर्ड (एफएसबी) एक ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम के लिए एक इंटरनेशनल बॉडी है, जो अपने अनुपालन और गैर-अनुपालन के आधार पर देशों को रैंक करता है।

बोर्ड ने भारत को उन देशों की लीग में रखा है, जो अत्यधिक आज्ञाकारी हैं। 

भारत के फाइनेंशियल सेक्टर में सुधार

किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए उसका फाइनेंशियल सेक्टर रीढ़ की हड्डी के समान होता है और ये बाजार में धन के सर्कुलेशन का मुख्य स्रोत भी है।

वित्तीय क्षेत्र की निगरानी और कामकाज के संबंध में समय-समय पर विभिन्न सुधार पेश किए गए हैं और ये सुधार विकासशील देशों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

ये सुधार संसाधनों के आवंटन, देश में विदेशी निवेश लाने, निवेश पर रिटर्न बढ़ाने और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए सिद्धांत और दिशानिर्देशों तैयार करते हैं।

भारत सरकार द्वारा पेश किए गए विभिन्न सुधार

केंद्र सरकार ने आर्थिक मामलों के विभाग (डीईसी) के तहत गठित एक समिति की सिफारिश पर फाइनेंशियल डेटा मैनेजमेंट सेंटर (एफडीएमसी) की स्थापना की थी। अजय त्यागी इस समिति के प्रमुख थे और वह केंद्रीय वित्त मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव थे। उन्होंने द फाइनेंशियल डेटा मैनेजमेंट सेंटर बिल 2016 नामक एक रिपोर्ट और एक मसौदा बिल प्रस्तुत किया था।

नरसिम्हम समिति की स्थापना अगस्त 1991 में आरबीआई के पूर्व गवर्नर एम. नरसिम्हम ने की थी और इसका गठन भारत में वित्तीय प्रणाली के महत्वपूर्ण पहलुओं को देखने के लिए किया गया था।

वर्ष 1993 में विदेशी मुद्रा बाजार में सुधार हुआ और उन्होंने प्रमुख रूप से भारतीय बाजार में करंट अकाउंट कन्वर्टिबिलिटी को अपनाया।

सरकार ने जेएएम ट्रिनिटी- जन धन, आधार और मोबाइल जैसी कई पहल शुरू की। यह भारत में पेश किए गए सबसे बड़े सुधारों में से एक है।

फाइनेंशियल सिस्टम को प्रभावित करने वाले फैक्टर्स

मांग और आपूर्ति मुख्य कारक हैं।

नियम बनाने के अधिकार और रचनात्मक दृष्टिकोण की कमी

देश के लोगों में वित्तीय और डिजिटल साक्षरता।

बाजार में एकाधिकार।

युनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई), आदि जैसे पब्लिक गुड इंवेस्टमेंट को समर्थन देने के लिए नए समाधान

फाइनेंशियल सेक्टर में सुधार के तरीके

पूरे देश की जनता के बीच वित्तीय समावेशन।

सिस्टम की उचित कार्यप्रणाली के लिए मौजूदा नीतियों में बदलावों की निरंतर निगरानी और शुरुआत करना।

ब्याज दरों के मार्केट डिटरमिनेशन से प्राइस डिस्कवरी की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना। इससे संसाधनों के आवंटन और दक्षता में सुधार करने में मदद मिलती है।

सभी वित्तीय संस्थानों को स्वायत्त स्थिति प्रदान करना।

अंतरराष्ट्रीय बाजारों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा के लिए हमारे देश की वित्तीय प्रणाली तैयार करना।

यह भी पढ़ें: भारतीय बैंकिंग का इतिहास

 

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